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कपास संकट ने बढ़ाया कपड़ा उद्योग पर दबाव

कपास उत्पादन में भारत का स्थान दुनिया में अग्रणी है, मगर लगातार गिरती पैदावार और बढ़ते कीट प्रकोप के चलते गंभीर कृषि संकट से जूझ रहा है। 2019-20 के बाद देश में कपास उत्पादन में तेज गिरावट आई है। इससे किसानों की आय पर असर पड़ा है। निर्यात कम हो गया है और वस्त्र उद्योग पर दबाव बढ़ रहा है।

रकबे की उत्पादकता में भारत का स्थान दुनिया में 36वां
केंद्र सरकार शुक्रवार को कोयंबटूर में किसानों एवं कृषि विज्ञानियों के साथ बड़े स्तर पर विमर्श करने जा रही है। इसमें उत्पादकता बढ़ाने पर गंभीर चिंतन होगा, क्योंकि रकबे में पहले नंबर पर होने के बाद भी उत्पादकता में भारत का स्थान दुनिया में 36वां है। सरकार एचटीबीटी (हर्बीसाइड टॉलरेंट बीटी) कपास को वैध करने पर भी विचार कर सकती है, ताकि वर्तमान रकबे में ही पैदावार बढ़ सके। यह जैव-प्रौद्योगिकी आधारित किस्म है, जिसे कीट और खरपतवार दोनों से बचाने के लिए विकसित किया गया है।

उन्नत बीजों की कमी से किसानों की कमर टूट रही
भारत के किसानों ने 2002 में बीटी कॉटन को अपनाया था। तब से अबतक लगभग 97 प्रतिशत किसान इसी उन्नत बीज का प्रयोग करते आ रहे हैं, मगर इसमें नई जैविक एवं पर्यावरणीय चुनौतियां आ जाने के बाद अब सरकार इसके विकल्प की तलाश में है, ताकि पैदावार बढ़े, लागत घटे एवं किसानों को नई ऊर्जा मिल सके।

उन्नत बीजों की कमी से किसानों की कमर टूट रही है। यही कारण है कि कपड़ा मंत्रालय की सलाह पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में पहल तेज कर दी है।

सरकार का लक्ष्य उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाना
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को तमिलनाडु के कोयंबटूर में “विकसित कृषि संकल्प अभियान” के तहत कपास संकट पर शीर्ष बैठक बुलाई, जिसमें कपास किसानों, वैज्ञानिकों, राज्य सरकारों और उद्योगों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे। किसानों से सुझाव आमंत्रित करने के लिए कृषि मंत्रालय ने एक टोल-फ्री नंबर भी जारी किया है, जो 18001801551 है।

मंत्री ने कहा है कि सरकार का लक्ष्य उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाना है। किसानों को जलवायु-अनुकूल एवं वायरस-रोधी बीज देने पर मंथन होगा।

देश में प्रतिवर्ष 315 लाख गांठ से ज्यादा की जरूरत
भारत में कपास उत्पादन 2013-14 में 398 लाख गांठ के शिखर पर था, जो अब घटकर 2024-25 में 306.92 लाख गांठ पर पहुंच गया है, जबकि देश में प्रतिवर्ष 315 लाख गांठ से ज्यादा की जरूरत है। ऐसे में पहले से ही उच्च लागत और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे भारत के कपड़ा उद्योग पर भारी दबाव पड़ रहा है।

कपास के आयात की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है
प्रत्येक वर्ष कपास के आयात की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है। बीटी काटन की जगह अब एचटीबीटी कपास को वैध करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया जा सकता है। इससे उत्पादकता दोगुनी हो सकती है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी ने लंबे परीक्षण के बाद इसे संतोषजनक बताया है और व्यावसायिक खेती की सिफारिश की है। यहां तक कि महाराष्ट्र, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश के कुछ जिलों में अवैध तरीके से किसान इसकी खेती भी करने लगे हैं। अभी इसे मंजूरी मिलनी बाकी है।

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